शिमला—नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शिमला के उपनगर पंथाघाटी में बन रही डाक्टरों की आवासीय कालोनी के निर्माण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। एनजीटी ने आदेश दिए हैं कि इस मामले की पड़ताल की जाए कि आखिर रोक के बावजूद शिमला में निर्माण कार्य कैसे किया जा रहा है। एनजीटी के आदेशों पर शिमला में किसी भी तरह के निर्माण पर फिलहाल रोक है। कहा गया है कि मंजूरी के लिए गठित सुपरवाइजरी कमेटी इसकी जांच करे और यह समिति एक महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट एनजीटी को दे। एनजीटी ने कहा है कि अगर वे सोसायटी के पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों से संतुष्ट होगी तो आगामी निर्माण के बारे में विचार किया जाएगा लेकिन तब तक निर्माण पर पूरी तरह से रोक रहेगी। एनजीटी ने डाक्टर्स की हाउसिंग सोसायटी को विभिन्न नियमों की उल्लंघना करने के लिए 3 करोड़ 24 लाख रुपए का जुर्माना भी लगा दिया है। जुर्माने की राशि में से सोसायटी को 75 फीसदी राशि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और शेष 25 फीसदी राशि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा करवानी होगी। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायिक सदस्यों जावेद रहीम व एसपी वांगडी और विशेषज्ञ सदस्य नगीन नंदा की पीठ ने स्थानीय नागरिक विद्या शांडिल की याचिका पर यह आदेश दिए हैं। एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि आईजीएमसी डाक्टर्स को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी को पंथाघाटी में कॉलोनी बनाने के लिए नगर निगम ने 6 फरवरी 2010 को मंजूरी दे दी थी लेकिन सोसायटी ने इस बावत पर्यावरण के विभिन्न प्रावधानों के तहत टीसीपी से कोई मंजूरी नहीं ली जबकि ये मंजूरी लेना जरूरी था। इसके अलावा पर्यावरण मंजूरी भी नहीं ली गई। इसके तहत सीवरेज, यातायात, सड़क निर्माण, ठोस कचरे के निपटान, ढलान की मजबूती और इनके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का आंकलन किया जाना था जो नहीं किया गया। गौरतलब है कि सोसायटी का 32 करोड़ 48 लाख रुपये का यह प्रोजेक्ट 21057.931 वर्ग मीटर पर बनना था। पर्यावरण नियमों के मुताबिक सासोयटी को 20 हजार वर्ग मीटर से ऊपर के प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण प्रभाव आंकलन करवाना होता है लेकिन सोसायटी ने ऐसा कुछ नहीं किया। जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सोसायटी को नोटिस भेजे तो भारी निर्माण होने के बाद पर्यावरण प्रभाव आंकलन करवाया गया जोकि हो ही नहीं सकता था क्योंकि ये आंकलन निर्माण करने से पहले होता है। इसपर एनजीटी ने आपत्तियां लगाई हैं। सोसायटी की ओर से 16 दिसंबर 2015 को राज्य पर्यावरण प्रभाव आंकलन प्राधिकरण में मंजूरी के लिए आवेदन किया गया। प्राधिकरण ने 15 अक्टूबर 2016 को पर्यावरण मंजूरी दे दी लेकिन साथ ही शर्त लगा दी कि सोसायटी को यहां पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना होगा या नगर निगम की सीवरेज लाइन से कनेक्शन लेना होगा। पीठ ने कहा कि राज्य विशेषज्ञ अप्रेजल कमेटी पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार किए बिना पर्यावरण की मंजूरी नहीं दे सकती थी और अगर अध्ययन में उल्लंघन पाया जाता तो मंजूरी केंद्र से मिलनी थी परंतु ऐसा नहीं हुआ। इसलिए नियमों के मुताबिक एनजीटी के पास दो ही विकल्प हैं या तो बने सभी फ्लैटस को ढहा दिया जाए या सुरक्षा प्रावधानों का पालन करवाकर निर्माण को जारी रखने की इजाजत दी जाए। बहरहाल एनजीटी ने एक बार फिर अहम आदेश दिए हैं।
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Courtsey: Divya Himachal
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