Tuesday, May 2, 2017

शहरी विकास में नियोजन का नाम नहीं

शिमला को आधुनिक बनाने के सपने तो बड़े दिखाए गए, पर साकार न हुई योजनाएं

newsnewsशिमला – पहाड़ों की रानी शिमला को कभी अंग्रेजों ने 25 हजार की आबादी के लिए बसाया था, लेकिन आज कमोबेश उन समय की सुविधाओं पर दो लाख से ज्यादा की आबादी रही है। शहर को आधुनिक बनाने के सपने तो बड़े दिखा गए और शहरी विकास विभाग भी बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाता रहा है ,लेकिन ये योजनाएं साकार नहीं हो रही। इन योजनाओं में बड़े गड्ढे बन गए हैं। राजधानी पर ट्रैफिक का जोर लगातार बढ़ रहा है और इसके लिए स्काई बस, पोड कार और तो  और मोनो रेल चलाने के जैसे सपने शिमलावासियों को दिखाए गए, इनकी बाकायदा घोषणाएं भी सरकारी नुमाइंदे करते रहे हैं, लेकिन ये मात्र कोरी घोषणाएं ही रह गई, धरातल में पर कुछ भी नहीं है। सरकार ने शहर में आधुनिक ट्रांसपोर्ट के लिए सिटी मोबिलिटी प्लान तैयार किया था। करीब 4700 करोड़ के इस प्लान पर अभी कोई काम नहीं हुआ है। यह प्लान 2031 तक के लिए शिमला शहर के लिए बनाया गया था । इसके  तहत शहर में आधुनिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम स्थापित होना था शहर में कई सड़क मार्ग भी बनाए जाने थे जो कि मुख्य मार्गों पर पड़ रहे वाहनों के दवाब को कम करते, लेकिन ये मार्ग और सुविधाएं अभी भी कागजों से बाहर नहीं आई है। राजधानी शिमला में सड़कों की हालात यह है कि ये बेहद तंग है और इन पर वाहनों का काफिला हर साल बढ़ता जा रहा है। ऐसे में यहां हादसों का लगातार भय बना रहता है। शहर में जगह-जगह ओवर फुट ब्रिज भी इस प्लान के तहत बनाए जाने थे। इसके अलावा शहर के कार्ट रोड से माल रोड को जोड़ने के लिए एस्किलेटर भी बनाए जाने थे, जिससे कि लोग व सैलानी कार्ट रोड पर से सीधे माल रोड़ पर पहुंचते, लेकिन ये योजनाएं धरी की धरी रह गई हैं।

एकमात्र रोप- वे मार्ग का हुआ निर्माण

सैलानियों के वाहनों के शहर के भीतर प्रवेश होने से ट्रैफिक जाम लगना आम बात है। हर रोज भारी तादाद में सैलानियों के वाहन शिमला पहुंचते हैं। ऐसे में शहर के भीतर सैलानियों के वाहन न आएं, इसके लिए शहर के बाहरी हिस्सों में पार्किंग बनाने और वहां से रोप-वे  के माध्यम से सैलानियों को शिमला के भीतर पहुंचाया जाने की योजनाएं बनाई गई, लेकिन इन योजनाओं पर जिस गति से काम होना था वह हो नहीं पाया। मौजूदा समय में एक मात्र रोप- वे जाखू में  बनकर तैयार हुआ है। इसमें भी कई साल लग गए। वहीं एक अन्य रोपवे टूटीकंडी बाइपास से अब बनाया जा रहा है, लेकिन इसे बनने में अभी कई साल लगेंगे।

गोल्फ कार्ट चलाने का प्लान भी धराशायी

शिमला नगर निगम ने शहर के प्रतिबंधित मार्गों पर गोल्फ कार्ट चलाने की एक बड़ी योजना  बनाई थी और इसके लिए शहर में गोल्फ कार्ट के ट्रायल तक किए गए। दावा किया गया कि इनसे शहर में लोगों को न केवल सुगम यातायात  मिलेगा बल्कि इससे पर्यावरण को डीजल व पेट्रोल के वाहनों से हो रहे नुकसान से भी बचाया जा सकेगा, लेकिन यह प्लान कानूनी पचड़े में पड़ गया। इसको लेकर मौजूदा नगर निगम के मेयर, डिप्टी मेयर व सरकार के बीच खींचतान हुई अंततः यह प्लान भी धाराशायी हो गया।

सैलानियों को आसानी से नहीं मिलती छत

राजधानी शिमला प्राकृतिक तौर पर खूबसूरत है। ऐसे में हर साल लाखों सैलानी इसे देखने के लिए यहां पहुंचते हैं। राजधानी में आने वाले सैलानियों की बात करें तो साल 2016 में यहां 1.65 लाख विदेश सैलानी तो 34.16 लाख देशी सैलानी पहुंचे, लेकिन इतने सैलानियों के लिए सही तौर पर यहां न तो खाने पीने की और न ही ठहरने के लिए उचित व्यवस्था है। होटलों में सैलानियों को महंगे दामों पर खाना परोसा जाता है और वहीं इनको इनको होटलों में कमरे नही मिल पाते। जानकारी के अनुसार शहर में मौजूदा समय में करीब तीन सौ होटल पर्यटन विभाग के पास पंजीकृत है, जिन पर लाखों सैलानियों का बोझ है।  ऐसे में एक अनार हजार बीमार वाली स्थिति शिमला में पैदा होती है। होटल मालिक भी सैलानियों की मजबूरी का फायदा उठाकर महंगे दामों पर कमरे देते है।

शहर में टनलों का काम फाइलों में

राजधानी में टनल बनाने का योजनाएं भी अधर में है। इस योजना के तहत शहर में कुछ जगहों पर टनल बनाकर शहर में यातायात को सुगम व त्वरित बनाया जाना था, लेकिन इनके बनाने की योजनाएं भी फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई हैं।

पर्यटक नगरी में आवासों की भारी कमी

शिमला शहर न केवल पर्यटन स्थल है ,बल्कि यह राजधानी भी है। यहां पर राज्य सचिवालय, विधानसभा के अलावा विभिन्न विभागों, बोर्ड के हजारों कर्मचारी काम करते हैं, लेकिन इन कर्मचारियों के लिए आवासों की भारी कमी है। शहर में मुश्किल से करीब 1850 सरकारी मकान हैं।  ऐसे में महंगाई के इस दौर में यहां कर्मचारी भी भारी भरकम किराया देकर अपने लिए एक या दो कमरों का जुगाड़ मुश्किल से करते हैं। यही नहीं यहां निजी क्षेत्र में भी भारी संख्या में लोग काम करते हैं। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों से भी युवक शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं लेकिन इतनी तादाद में यहां आवास नहीं है। यही वजह है कि शिमला शहर में आवास आसानी से नहीं मिलते और यहां कमरों का किराया आसमान छूने वाला है। गरीब व मध्यम वर्ग का तबका यहां एक कमरे का भी जुगाड़ नहीं कर पाता।

सिटी में नहीं बना कोई सेटेलाइट टाउन

राजधानी शिमला की आबादी हर साल बढ़ती जा जा रही है। ऐसे में यहां के पानी, सीवरेज और सड़क सुविधाएं पर भारी दबाव पड़ रहा है, लेकिन इस दबाव को कम करने के लिए शिमला शहर के आसपास सेटेलाइट टाउन तक नहीं बनाए गए। हिमाचल के विभिन्न हिस्सों से ही नहीं बल्कि बाहरी   राज्यों से भी भारी संख्या में शिमला  में युवक शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ रोजगार के लिए आते यहां पहुंचते हैं।  इससे शिमला शहर पर जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन  इस दबाव को कम करने के लिए सेटेलाइट टाउन का प्लान बनाने की योजनाएं सिरे नहीं चढ़ पाई हैं। हालांकि अब शिमला के समीप जुब्बड़हट्टी में एक टाउन बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है, लेकिन इस टाउन के बनने में अभी कई साल लग जाएंगे।

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source: DivyaHimachal

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