
सरकारनेअपना पिछला रुख दोहराते हुए कहा कि ये प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं को उनके समुदाय के पुरुषों और अन्य समुदायों की महिलाओं की तुलना में असमान एवं कमजोर बनाती हैं। केंद्र ने इन प्रथाओं को असंवैधानिक घोषित करने की मांग उठाई है। साथ ही कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में छह दशक से ज्यादा समय से कोई संशोधन नहीं हुआ है। मुस्लिम महिलाएं देश की आबादी का कुल आठ% हैं। तुरंत तलाक के डर के मारे वह अत्यधिक कमजोर रही हैं। सरकार ने कहा, यह सच है कि तीन तलाक और बहुविवाह से बहुत कम महिलाएं ही प्रभावित हैं। लेकिन इसके दायरे में आने वाली हर महिला हमेशा डर के साये में जीती है। निकाह और तलाक धर्म की स्वतंत्रता में शामिल: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निकाह और तलाक को धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा बताया है। तीन तलाक और बहु-विवाह के खिलाफ केंद्र सरकार के ताजा हलफनामे को बोर्ड के सचिव मौलाना फजलुर्रहीम मुजद्ददी ने अस्पष्ट करार दिया है। उन्होंने कहा कि धार्मिक आजादी के तहत कोई भी धर्म मानने वालों को धार्मिक पहचान के दायरे में जिंदगी गुजारने के तरीके बताए जाते हैं। प्रदेशके... ...
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source: Dainik Bhaskar
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