नेरवा – क्षेत्र के किसान बागवान बर्फवारी का बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं,परन्तु इंद्र देवता मानों उनका इम्तिहान लेने पर उतारू है। बीते एक सप्ताह से सुबह ही बादल छाने का सिलसिला लगातार जारी है, परन्तु शाम ढलते-ढलते इन बादलों का बिना बरसे निकल जाना किसानों-बागबानों को मायूस कर रहा है। शनिवार को भी दोपहर तक आसमान में बादल छाये रहे एवं दोपहर बाद हलकी बूंदाबांदी शुरू होने से किसानों ने कुछ राहत की सांस ली है। उधर दिन को बादल छाये रहने और रात को आसमान के साफ़ होने से ठण्ड में भी भारी इज़ाफ़ा हो गया है। वहीं सेब की फसल के लिए आवश्यक चिलिंग ऑवर्स के लिए दिसंबर एवं जनवरी माह में बर्फवारी अति आवश्यक है। हालांकि दिसंबर के पहले पखवाड़े में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हुई बर्फवारी से बागबानों ने थोड़ी राहत अवश्य ली थी, परड्डतु दिसंबर का दूसरा पखवाड़ा बीत जाने एवं नए साल में भी बारिश बर्फवारी न होने से किसान बागवान चिंता में पड़ गए हैं। इन दो महीनों में होने वाली बर्फबारी सेब की फसल के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। बताया जाता है कि दिसंबर और जनवरी के पहले पखवाड़े तक गिरने वाली बर्फ ठोस होती है एवं यह लंबे समय तक जमी रहती है। यह बर्फ न केवल बगीचों में खाद का काम करती है,अपितु इससे बगीचों में अनावश्यक रूप से उगने वाला खर पतवार भी नष्ट हो जाता है। सबसे बड़ी बात इससे सेब के लिए आवश्यक दो हजार से अधिक चिलिंग ऑवर्स भी आराम से पूरे हो जाते हैं। जबकि इसके बाद की बर्फ को भारी एवं कच्चा माना जाता है,इससे सेब के पौधों को नुक्सान का ख़तरा रहता है। इस बर्फ में भारीपन होने की वजह से सेब की टहनियों और पौधों के टूटने का ख़तरा बढ़ जाता है। इसके आलावा कच्ची होने की वजह से यह बर्फ जयादा समय तक नहीं टिकती,जिस वजह से जमीन को पर्याप्त नमी नहीं मिल पाती। उधर गेंहू-जौ की फसल के लिए भी बारिश और बर्फवारी जरूरी है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यह बर्फ खाद का काम तो करती ही है,जबकि नीचले क्षेत्रों में भी जमीन में नमी होने से इसकी पैदावार बढ़ जाती है। उधर शनिवार को बारिश शुरू होने के बाद किसानों बागवानों को बर्फबारी की उम्मीद बांध गई है।
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