नारकंडा के खेतों-जंगलों में गुच्छी की तलाश


नारकंडा — सेब, आलू के बाद किसानों का रुझान गुच्छी की ओर बढ़ने लगा है। जाहिर तौर पर गुच्छी की कोई खेती नहीं होती। यह प्रकृति द्वारा जमीन से, मार्च, अप्रैल और मई महीनों में पैदा होता है।इन महीनों में गुच्छी यानी चैऊ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को आय का एक अच्छा साधन है। विशेषतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का रुझान गुच्छी की ओर काफी बड़ा है। इन दिनों ऊपरी शिमला में गुच्छी के खरीददार घर द्वार पहुंचने लगे हैं। औषधीय गुणों से भरपूर गुच्छी की कीमत आठ हजार से दस हजार रुपए तक प्रति किलोग्राम बताई जा रही है। ऊपरी शिमला में अधिकतर किसान अपने घरों में गुच्छी की सब्जी बना कर खाते हैं। गुच्छी को लेकर बुजुर्गों का कहना है कि जितने अधिक बादल गरजते हैं, उतने अधिक जमीन से गुच्छी (चैऊ) पैदा होता है। गुच्छी जहां कई गंभीर बीमारियों को नष्ट कर देता है, वहीं गुच्छी की सब्जी पौष्टिक तथा प्रोटीन से भरपूर होती है। ऊपरी शिमला में कई लोग गुच्छी से अच्छी-खासी आमदनी पैदा कर रहे हैं। इसके अलावा नेपाल मूल के लोग इन दिनों गुच्छी से हजारों रुपए कमा रहे हैं। इन दिनों नेपाली मूल के लोग मजदूरी करने के बजाय जंगलों व खेतों में जाकर ढूंढने के काम में लगे हैं।







source: DivyaHimachal

Full Story at: http://www.divyahimachal.com/himachal/shimla-news/%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%96%e0%a5%87%e0%a4%a4%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%9c%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%ae/

Post a Comment

Latest
Total Pageviews