चंबा — हिमाचल में मनाए जाने वाले मेलों का अपना ही महत्त्व है। ऐसा ही एक मेला चंबा में मनाया जाने वाला सूही का मेला है। मिंजर के बाद चंबा में दूसरा सबसे बड़ा उत्सव है सूही मेला। यह मेला उसी देवी की याद दिलाता है जिसने अपनी प्रजा को पानी उपलब्ध कराने के लिए अपना बलिदान दे दिया था। उस रानी के बलिदान को हृदय से लगाए रखा, चंबा की प्रजा ने और इसकी परिणति मेले में कर दी, ताकि आने वाली पीढि़यां इस बात को याद रखें कि उस रानी सुनयना ने अपनी प्रजा को पानी उपलब्ध करवाने के लिए अपने फर्ज की खातिर खुद को कुर्बान कर दिया। मेले की शुरुआत आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व हुई, जब राजा साहिल वर्मन ने चंबा नगर की स्थापना की थी। तब यहां पीने के पानी की दिक्कतें थीं, नगरवासियों को शहर से दूर रावी नदी से पानी लाना पड़ता था, जिससे लोग दुखी थे। कहा जाता है कि पीने के पानी को शहर में पहुंचाने के प्राकृतिक जल स्रोतों व नदी नालों से पानी पहुंचाने कई कोशिशें की गईं, मगर सब प्रयास बेकार गए। यहां प्रचलित जनश्रुति के अनुसार एक रात राजा को स्वप्न आया कि यदि वह अपना अथवा अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य का बलिदान पानी के स्रोत पर करेगा, तभी शहर में पानी पहुंच सकेगा। राज साहिल वर्मन इससे पे्ररित होकर स्वयं बलिदान देने को तैयार हो गए, मगर रानी सुनयना नहीं मानी, राजा के बिना प्रजा को कौन पालेगा। इसी के चलते महारानी सुनयना अपना बलिदान देने को तैयार हो गई। पंडितों-पुरोहितों और राज ज्योतिषियों से राजा ने परामर्श कर शुभ मुहूर्त वाले दिन महारानी सज-धजकर एक पालकी में बैठकर बलिदान स्थल की ओर रवाना हुई। इस यात्रा में स्त्री-बच्चे, बूढ़े सब पालकी के पीछे उदास मन से चले। नगर की ऊपरी पहाड़ी पर पहुंच कर रानी ने पालकी से उतर कर कुछ देर विश्राम किया तथा अंतिम बार उस स्थान से अपने प्यारे शहर को निहारा व प्रणाम किया तथा पालकी चल पड़ी।
source: DivyaHimachal
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