बरकरार रहे हरियाली, चुनी जंगल की रखवाली

विनोद भावुक, मंडी


उसे बचपन से ही पेड़-पौधों से लगाव हो गया था। जैसे-जैसे होश संभाला, वनों को बचाने और बढ़ाने की हसरत हिलौरे मारने लगी। बेजुबान पेड़ों से स्नेह इतना कि स्कूली पढ़ाई के दौरान ही उसने तय कर लिया था कि वह जंगलों को बचाने के मिशन में ही जुटेगी। वह जानती थी कि पेड़ों से उसके इस अनूठे स्नेह को जमीन तभी मिल सकती है जब वह वन विभाग में आला अफसर बन जाए। इसी प्रण ने उसे भारतीय वन सेवा में जाने के लिए प्रेरित किया। हालांकि पहले दो प्रयासों में उसे सफलता नहीं मिली लेकिन तीसरी दफा दीपश



source: Jagran

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