चिलिंग आवर्ज की टेंशन घटी

ठियोग – इस साल जिस तरह से बर्फबारी व बारिश का दौर सर्दियों के शुरूआती दौर में चल रहा है इसका सबसे अधिक असर आने वाले समय में सेब उत्पादन पर देखने को मिल सकता है। बागबानी विशेषज्ञ का मानना है कि सेब की पौधों को सुप्ताव्स्था में चिलिंग आर्वस की प्रक्त्रिया का पूरा होना आवश्यक होता है जिससे कि आने वाले समय में सेब की पैदावार पर इसका असर देखने को मिलता है। इस बार लगभग चिलिंग आर्वस पूरे होने की पूरी संभावना जताई जा रही हैं ऐसे में फसल भी अच्छी होती बैठे है। गत वर्ष की अपेक्षा इस बार सेब का उत्पादन पिछले साल से कहीं ज्यादा था। प्रदेश में अधिकतर लोगों की आर्थिकी सेब पर निर्भर है और चार हजार करोड़ की सेब की आर्थिकी को लेकर सर्दियों से अभी पूरे होने वाली प्रक्त्रिया चल रही है तो इससे सेब उत्पादन अच्छा हो सकता है। विशेषज्ञ की माने तो यदि मौसम में ऐसे ही रहता है तो इस साल भी अच्छी फसल होने की संभावना है। बेहतर फसल के लिए सर्दियों में 1200 से 1600 घंटे में तापमान सात डिग्री तापमान होना चाहिए। बागबानी विषय विशेषज्ञ मदन ठाकुर ने बताया कि सेब की सही सैटिंग के लिए चिलिंग आवर्स का पूरा होना आवश्यक होता है जिसके लिए तापमान सात डिग्री तक होना चाहिए जैसा कि पिछले साल हुआ था और इसा बार कुछ ऐसा ही लग रहा है। उन्होंने बताया कि मिटटी में तापमान माईनस में होना चाहिए जिससे मार्च में सेब की सैटिंग अच्छी होती है। उन्होंने बताया कि सेब के पौधों में फल लगने के लिए सात डिग्री सेल्यियस से कम तापमान बेहद जरूरी होता है। सेब के पौधें दिसंबर महिने में सुप्तावस्था में होते हैं। उन्होंने इस अवस्था से बाहर लाने के लिए सात डिग्री का तापमान औसतन 1200 से 1600 घंटे तक चाहिए होता है। इस दौरान की पक्त्रिया को ही चिलिंग आवर्स कहते हैं। चिलिंग आवर्स पूरी न होने पर पौधे की सप्तावस्था टूट जाती है और पोषक तत्व फिर से सारे पौधे में एकसमान होकर फैल जाते हैं। यदि चिलिंग आवर्स पूरे न हो तो पौधों के पोषक तत्व एक समान नहीं फैलते इससे पौधों में फूल सही तरीके से नहीं पाते हैं और फल की सैंिटंग भी अच्छी नहीं हो पाती है। वर्ष 2017-18 में भी सेब की काफी कम फसल हुई थी जबकि साल 2019 में सेब की काफी अधिक पैदावार थी। इस बार भी यदि सर्दियों में बर्फबारी अच्छी हुई तो इससे सेब की अच्छी फसल की उम्मीद लगाई जा सकती है।

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