शिमला — कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कर्मचारी महासंघ को आखिर मान्यता कब मिलेगी, जिस पर सरकार अभी तक चुप बैठी हुई है। कर्मचारी नेताआें की गुटबंदी कम नहीं हो रही है और यह सिर्फ सरकार की चुप्पी के कारण हुआ है। कर्मचारी महासंघ राजनीति का शिकार हो चुका है, जिससे प्रदेश के कर्मचारियों के हित प्रभावित हो रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि बार-बार मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मान्यता की गुहार लगाने के बाद अब कर्मचारी नेता भी मौन धारण करने लगे हैं। न केवल प्रदेश स्तर पर महासंघ में गुटबंदी सामने आ चुकी है, बल्कि सभी विभागीय संगठन भी दोफाड़ हो चुके हैं। कुल मिलाकर कर्मचारी राजनीति का शिकार हो रहे हैं, जिसका फायदा सरकार उठा रही है। दोनों गुट अपने-अपने दावे कर रहे हैं, जिससे कर्मचारियों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है, ऐसे में कर्मचारी हित उपेक्षित हैं। माना जा रहा था कि कांग्रेस पार्टी सत्ता में आने के बाद किसी एक गुट को मान्यता देकर महासंघ का तमगा पहनाएगी। मगर ऐसा नहीं हो सका, बल्कि गुटबाजी में फंसे नेता जोर-आजमाइश करके मान्यता की लड़ाई लड़ रहे हैं। इन नेताओं की लड़ाई लगातार बढ़ रही है और जिला स्तर पर पहुंच चुकी है। जिलों में दोनों गुट अपने-अपने चुनाव करवा रहे हैं, लिहाजा वहां पर भी विभागीय कर्मचारियों को बांट दिया गया है। इन परिस्थितियों में पूर्व में बना कर्मचारी कल्याण बोर्ड क्या दोबारा से बन पाएगा, इस पर सवाल खड़ा हो चुका है। पूर्व धूमल सरकार ने कर्मचारी कल्याण के लिए कल्याण बोर्ड बनाया था, जिसने पेंशनरों के लिए भी अपनी सिफारिशें दी थीं।
source: DivyaHimachal
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