नैनाटिक्कर — पर्यटन को प्रदेश सरकार ने उद्योग का दर्जा दे रखा है। इसी वजह से लाखों सैलानी प्रदेश की खूबसूरत वादियों का मजा लूटने इस देवभूमि में आते हैं। मगर इसे पच्छादवासियों का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि अंतरराज्यीय सीमा पर स्थित होने के बावजूद और कुदरत के हसीन नजारे समेटे पच्छाद पर्यटन रूपी मानचित्र में आज कहीं भी नहीं है। भूरेश्वर मंदिर इतनी खूबसूरत जगह पर स्थित है कि वहां से किसी का भी वापस आने का मन नहीं करता। चारों तरफ दूर-दूर तक हसीन वादियां देखकर हर किसी का मन वहीं ठहर जाने का होता है। उस जगह पैराग्लाइडिंग और आकाशीय खेलों की संभावनाओं को भी तलाशा जा सकता है। धार्मिक दृष्टि से भी उस जगह का महत्त्व कम नहीं है। मानगढ़ कस्बा भी कुदरत की एक अनमोल कृति है। चारों ओर मनोरम पहाडि़यों से घिरा मैदानी भाग सामने चमकती बर्फीली चोटियां और पांडवों द्वारा निर्मित वहां पर स्थित शिव भोले का मंदिर किसी स्वर्ग से कम जगह नहीं है। उसी इलाके के नजदीक ही पड़ती है शृंगी ऋषि की गुफा, जो कि धार्मिक दृष्टि से एक अनमोल तोहफा है, जिसे एक बार देखकर किसी का मन न भरे। घिन्नी घाड के इलाके में ‘काना खडोह’ नामक पुरातन शिवलिंग जो कि शायद अपने आप और नैनाटिक्कर अपने सूर्यास्त ‘सन सेट’ और दूरगामी दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। राजगढ़ को मनमोहक वातावरण और वहां की स्थिति शिमला व जिला के ठियोग से किसी मायने में कम नहीं? पच्छाद को कुदरत ने अपना खजाना दिल खोलकर लुटाया है। यहां पर रज्जू मार्ग भी विकसित किए जा सकते हैं। मगर आज तक इस जगह को पर्यटन के नजरिए से देखा ही नहीं गया, न ही कहीं ढंग के होटल-रेस्तरां हैं, न ही स्तरीय रेस्ट हाउस है। न ही सड़कें ठीक हैं और सबसे बड़ी बात यहां की महत्त्वपूर्ण जगहों का प्रचार प्रसार ही नहीं हुआ।
source: DivyaHimachal
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