पंचायतों के रहम पर गरीबों का चयन


धर्मशाला — हिमाचल प्रदेश में पिछले एक दशक से गरीबों के चयन के लिए सर्वे नहीं हो पाया है। ऐसे में गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों का चयन मात्र पंचायत प्रधानों की दया दृष्टि पर निर्भर होकर रह गया है। हालात यह हैं कि पक्के मकान और चौपहिया वाहन का सुख भोगने वाले तो बीबीपीएल का लाभ उठा रहे हैं, लेकिन गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को सुविधा नहीं मिल रही है। पंचायत स्तर पर ग्राम सभाओं की बैठकों में होने वाले इस चयन के लिए प्रशासन ने दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं, लेकिन धरातल पर कुछ और ही दिख रहा है। नया सर्वे न होने के कारण न तो पंचायतों में बीपीएल परिवारों की संख्या बढ़ पाई है और न ही एक दशक से लाभ ले रहे लोग आसानी से सूची से बाहर हो रहे हैं। वर्ष 2003-04 के बाद गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की पहचान ही नहीं की गई है, जो दस साल पहले गरीब थे, आज भी वह गरीबी का जीवन गुजार रहे हैं। दूसरी ओर जो परिवार बीपीएल के पात्र हैं, उन्हें इसलिए स्थान नहीं मिल रहा कि पुराने लोग साधन संपन्न होने के बाबजूद अपना नाम कटवाने को तैयार नहीं हैं। पंचायत प्रधान भी वोटों की राजनीतिक के चलते गांव में बिना किसी का विरोध किए अधिकतर पुराने नामों पर ही मुहर लगा देते हैं। कहीं फेरबदल हो भी रहा है तो वहां प्रधानों के चहेतों को ही लाभ मिल रहा है। ऐसे में प्रदेश के हजारों पात्र परिवार इस बड़ी सुविधा से अछूते रह रहे हैं। ग्राम सभाओं की बैठकों में प्रशासन की ओर से विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों की ड्यूटियां तो लगाई जाती हैं पर अधिकतर स्थानों पर वह भी नहीं पहुंच रहे। ऐसे में यह व्यवस्था सवालों के कटघरे में घिरने लगी है। उधर, एसडीएम हरीश गज्जू का कहना है कि सर्वे सरकार के निर्देशों के बाद ही हो पाएगा। ग्राम सभाओं में पारदर्शिता लाने के लिए कई नियम बनाए गए हैं। इसके लिए ग्रामीणों को जागरूकता दिखाते हुए आगे आना होगा। किसी भी पात्र व्यक्ति को अपात्र व्यक्ति का नाम हटाकर अपना नाम पंजीकृत करवाने के लिए संबंधित एसडीएम कार्यालय में प्रार्थना पत्र देने का अधिकार है। जब तक सर्वे नहीं होता लोग मनमानी करने वाली पंचायतों के खिलाफ शिकायत कर सकते हैं।







source: DivyaHimachal

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