हर चौथे दिन जान लेने की कोशिश


शिमला — हिमाचल के लोगों पर गुस्सा हावी होने लगा है। शांत देवभूमि में रहने वाले लोग एक दूसरे के खून के प्यासे बनने लगे हैं। प्रदेश में औसतन हर चौथे दिन कोई न कोई किसी की जान लेने पर उतारू हो रहा है। या यूं कहे कि अपने ही अपनों के जानी दुश्मन बनते जा रहे हैं। पुलिस की डायरी में दर्ज अटेंप्ट टू मर्डर के पांच सालों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो हैरत में डालने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं। शांत कहलाए जाने वाली देवभूमि में पांच साल में 300 लोगों को जान से मारने की कोशिश की जा चुकी है। यह भी कहा जा सकता है कि हर वर्ष औसतन 60 लोगों की जान लेने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य का एक मात्र लाहुल-स्पीति जिला ऐसा है, जहां पर अभी भाईचारा बरकरार है। यानी यहां पर अभी कोई ऐसा मामला सामने नहीं आया है। लाहुल-स्पीति जिला को छोड़ सभी जिलों में कोई न कोई किसी की जान का दुशमन बनता जा रहा है। सबसे ज्यादा शिमला व कांगड़ा के लोग गुस्सैल प्रवृत्ति के हैं। इन जिलों में कत्ल करने की कोशिश के सबसे जयादा मामले पुलिस फाइलों में दर्ज हैं। हिमाचल में 2008 में 59 लोगों की जान लेने की कोशिश की गई। 2009 में जान लेने की कोशिश का यह आंकड़ा 73 तक जा पहुंचा। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा बल्कि 2010 में 75 लोगों पर जानलेवा हमला कर उन्हें मौत के घाट उतारने का प्रयास भी किया गया। 2011 में अटेंप्ट टू मर्डर के मामलों में कमी आई। इस वर्ष 50 लोगों को ही जान से मारने का प्रयास किया गया। वर्ष 2012 में 43 लोगों पर जानलेवा हमले किए हैं। पुलिस में दर्ज मामलों के मुताबिक नशा, जर, जोरू, जमीन, आपसी रंजिश, पे्रम प्रसंग, मानसिक तनाव को इसका कारण बताया जा रहा है।







source: DivyaHimachal

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