बंपर सेब फसल मधुमक्खियों के हाथ


नारकंडा — सेब हिमाचल प्रदेश में प्रमुख नकदी फसल है। प्रदेश में दो तिहाई से अधिक फलों का क्षेत्र सेब का है। सेब पर लगभग 25 हजार करोड़ रुपए की आर्थिकी है, लेकिन इस सब के बावजूद सेब की पैदावार मौसम के रहमोकरम पर काफी हद तक निर्भर है। इन दिनों निचले व मध्यम सेब उत्पादक क्षेत्रों में सेब की फ्लावरिंग का दौर शुरू हो चुका है। काबिलेजिक्र है कि सेब की अच्छी पैदावार व फ्रूट सैट के लिए बागीचों में परागण किस्मों का होना जरूरी है। बागबानी विशेषज्ञों के मुताबिक सेब उत्पादक क्षेत्रों में 85 फीसदी किस्में त्वलंस डिलिशियस तथा अन्य सुधरी वैराइयटियां हैं। परागण किस्मों में गोल्डन एरेड गोल्डन टाइडमैन तथा वरसैस्टर इत्यादि की आवश्यकता होती है। बागबानी विशेषज्ञों के मुताबिक सेब के बागीचों में कम से कम 15 फीसदी परागण किस्मों का होना जरूरी है। अच्छी पैदावार के लिए परागण का विशेष महत्त्व है। जहां फूल खिलते समय ठंड व कोहरा पड़ता है। उन क्षेत्रों में 25 फीसदी परागण किस्मों का होना जरूरी है। इसके अलावा जिन सेब उत्पादक क्षेत्रों में ओलावृष्टि का अधिक खतरा रहता है उन सेब उत्पादक क्षेत्रों में 50 फीसदी परागण किस्मों का होना जरूरी है। बागबानी विरोषज्ञों का कहना है कि इसके अलावा सेब की उत्तम फसल के लिए परागण के रूप में मधुमक्खियों का विशेष योगदान रहता है। मधुमक्खियों द्वारा परागण से सेब अधिक मात्रा में तो लगता है। इसके अलावा फल झड़ना भी कम हो जाता है। बागबानी विशेषज्ञों के मुताबिक बागबानों को चाहिए कि फ्लावरिंग के दौरान परागण के लिए मधुमक्खियों की दो प्रमुख जातियां एपिस सेराना और एपिस मैलीफरा किराए पर ले सकते हैं। फ्रूट सैट के समय अधिक ठंड, कोहरा और पाला पड़ना सेब के लिए नुकसान देय है।







source: DivyaHimachal

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