शब्दों में बयां किया पहाड़ों का दर्द


जागरण संवाद केंद्र, शिमला : पहाड़ बोलता है कि बुरे लोग हैं, ये कंपनी वाले पहले धीरे से उधेड़ उसका कंबल फिर उसका एक टुकडा चुरा ले गए.. अब उसके जूतों और जुराबों में छेद कर न जाने क्या- क्या ढूंढ़ रहे हैं... कवि की इन पंक्तियों ने पहाड़ों की हो रही दयनीय दशा को खूब दर्शाया है। शिमला में बसंत के आगमन पर आयोजित कवि संगोष्ठी में कुल राजीव ने अपनी इसी कविता से वर्तमान में विकास कार्यो के लिए छलनी किए जा रहे पहाड़ व पेड़ों की व्यथा सुनाई है। इसी प्रकार सेवानिवृत्त आइएएस सीआरबी ललित ने कुछ ने अपनी



source: Jagran

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