इतना ही नहीं, प्रत्येक 100 में से करीब 16 युवा ऐसे भी हैं जो चिंता व मानसिक तनाव से ग्रस्त हैं। इनके अलावा अचानक से लगने वाली चोट और हिंसा भी युवाओं की अपनी चपेट में ले रही है। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित होने वाले इस सर्वे आधारित अध्ययन में बताया कि हिमाचल प्रदेश के चार जिले शिमला, किन्नौर, कांगड़ा और सिरमौर के 12 ब्लॉक (प्रत्येक जिले में तीन) में जाकर शोधकर्ताओं ने जब 10 से 24 साल की आयु के बच्चों, किशोरों और युवाओं पर अध्ययन शुरू किया तो पांच तरह की स्वास्थ्य समस्याएं सबसे अधिक देखने को मिलीं।
शोधकर्ताओं ने करीब 360 गांवों और शिमला के 30 वार्डों के बच्चों और युवाओं पर विश्लेषण किया। शोधकर्ताओं का कहना है कि किसी भी देश के लिए युवा आलोचनात्मक और साधन संपन्न आबादी बनाते हैं। भारत की बात करें तो कुल आबादी में इनका योगदान करीब 35 फीसदी तक है। हालांकि पोषण, मादक द्रव्यों का सेवन, मानसिक स्वास्थ्य, जोखिम भरा यौन संबंध, व्यवहार, व्यक्तिगत स्वच्छता, चोटें और हिंसा इनके विकास पर असर डाल रहे हैं जिन्हें लेकर जमीनी स्तर पर काम करने की बहुत जरूरत है।
10 से 24 साल वाले कुल 2895 युवाओं पर हुए इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि कम वजन (44.39%), सेल फोन की लत का खतरा (19.62%), चिंता महसूस करना (15.54%), अनजाने में चोट लगना (14.72%) और हिंसा (8.19%) के मामले सामने आए। यह परिणाम बताते हैं कि मोबाइल फोन की लत और कम आयु में मानसिक तनाव जैसी स्वास्थ्य समस्याएं सिर्फ महानगरों तक सीमित नहीं रह गई हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह पांचों समस्याएं ऐसी हैं जिनसे बड़े सरल तरीके से निपटा जा सकता है जिसके लिए समय पर हस्तक्षेप बहुत जरूरी है।
19% बच्चे बोले-मोबाइल के बिना नहीं रह सकते
सर्वे के दौरान 63 फीसदी से ज्यादा बच्चों और युवाओं के पास उनका खुद का मोबाइल फोन मिला। इनमें से 568 यानी 19.62 फीसदी बच्चों ने यह स्वीकार किया है कि वह फोन के बगैर नहीं रह सकते हैं। फोन पर उनकी निर्भरता बहुत है। सोशल साइट्स और मोबाइल गेम का शौक भी है।
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