Friday, September 6, 2019

प्राकृतिक खेती से लहलहाएंगी फसलें

कृषि विश्वविद्यायल में शून्य बजट कृषि पर जोर, जैविक खेती में बढ़ा रुझान

पालमपुर – वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रसायन रहित जैविक खाद्यान्नों की बढ़ती मांग को देखते हुए जैविक कृषि ही एक विकल्प है। पर्वतीय क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरकों का कम प्रयोग होने के कारण जैविक कृषि का स्तर एवं महत्त्व बढ़ रहा है। सिक्किम जैविक कृषि को अपनाने में प्रथम स्थान पर है, जहॉं पर सफलतापूर्वक जैविक कृषि अपनाई जा रही है। हिमाचल प्रदेश में लगभग 23000 हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती की जा रही है। जैविक कृषि में प्रयोग होने वाले संघटक एवं विधियां काफी जटिल एवं महंगे हैं, दूसरे जैविक कृषि में पौधों की मांग के अनुरूप पोषक तत्त्वों की उपलब्धता कम पाई जाती है। इसके कारण इसकी दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था के रूप  में प्राकृतिक खेती ही एक विकल्प है।  वर्तमान समय में उभरती प्रौद्योगिकी को शून्य लागत प्राकृतिक खेती का नाम दिया गया है, जिसका कृषि विश्वविद्यालय में स्थापित नए केंद्र पर वैज्ञानिक ढंग से परीक्षण किया जा रहा है, जिसके लिए राज्य सरकार द्वारा पद्मश्री सुभाष पालेकर प्राकृतिक तकनीक मूल्यांकन एवं प्रसार परियोजना स्वीकृत की गई है।

पालमपुर में स्थापित होगा डेयरी फार्म

प्राकृतिक खेती के लिए भारतीय मूल की देशी गाय एक महत्त्वपूर्ण घटक है। इसके अंतर्गत सभी कृषि विज्ञान केंद्रों एवं मुख्यालय (पालमपुर) में डेयरी फार्म स्थापित किया जा रहा है। इसमें साहीवाल, रैडसिंधी, देशी पहाड़ी गाय एवं यॉक को रखा जा रहा है। कृषि विश्वविद्यालय ने इस पर पूरे देश में पहली बार स्नातकोत्तर एवं पीएचडी विद्यार्थियों को शोध करने के लिए विभागों में विभिन्न विषयों एवं समस्याओं पर कार्य दिए गए हैं।

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Courtsey: Divya Himachal
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