नाहन — सांस्कृतिक चेतना का जहां तक सिरमौर से संबंध है। यहां के रीति-रिवाज एवं परंपराएं मेले एवं त्योहार देश के अन्य मार्गों से भिन्न है। बरसात के दिनों में जहां जिला में हरियाली मेले मनाए जाते है, वहीं जनमापती पर्व पर लोग अपने आपको लोहे की गर्म जंजीरों से पीटते हैं। यही नहीं जिला में दिवाली के ठीक एक माह बाद बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है, वहीं मांघी त्योहार पर क्षेत्र में करीब 80 हजार बकरों की बलि दी जाती है। इन दिनों जिला के गिरीपार क्षेत्र में विशु मेलों की धूम है। गिरीपार क्षेत्र में विशु मेले बैशाखी से शुरू होकर एक महीने तक चलते है। बिशु पर्व के मौके पर क्षेत्र के लोग पूरे साल के भर के लिए कपड़ों की खरीद करते है। स्थानीय लोगों का कहना है कि बिशु मेले में ग्राम देवता की पालकी के साथ ग्रामीण जुलूस निकालते है तथा सभी ग्रामीण जुलूस की शक्ख में अपने गांव से मेला स्थल तक जाते है। क्षेत्र के ग्रामीणों के मुताबिक विशु मेले में ठोडा (तीर अंदाजी) खेल मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। ठोडो नृत्य में क्षेत्र के दो कबीलों के लोग एक-दूसरे पर बार करते है तथा बार करने से पहले स्थानीय भाषा में उसे ठोडा खेलने के लिए ललकारते है। भले ही आधुनिकता की दौड़ में इन मेलों का रुझान कम होता जा रहा है। मगर जिला के गिरीपार क्षेत्र के लोगों ने आज भी अपनी संस्कृति को संजोकर रखा है। गिरिपार क्षेत्र में पहला विशु मेला शिलाई तहसील के नैनीधार में बैशाखी के दो दिन बाद मनाया जाता है। गिरिपार क्षेत्र के तिलौरघाट, कफोटा, जामना, शिलाई, द्राबिल, काने मटमोल, सतौन, सुईनल तथा आखिरी मेला संक्रांति के दिन 14 मई को पांवटा तहसील के तुनियों में आयोजित किया जाता है। इन मेले में अधिकतर युवक, युवतियां अपने जीवन साथी का चयन करते है और यही एक मौका होता है, जब दोनों युवा दिल आपस में मिलकर जिंदगी में साथ जीने मरने की कसमें खाकर विवाह सूत्र में बंधने का रास्ता तय करते हैं।
source: DivyaHimachal
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