ढोल की थाप पर कुश्ती के दांव पेंच


कांगड़ा — ग्रीष्म ऋतु में कांगड़ा जिला के विभिन्न नगरों व गांवोें मंे छिंज (दंगल) का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। दरअसल गर्मियांे में यहां आयोजित मेले-उत्सवों में ढोल की थाप के बीच छिंजों के दांव पेंच से कांगड़ा घाटी में एक नया उत्साह फैल जाता है। अप्रैल-मई माह में आयोजित होने वाले इन मेलों में छिंज देखने के लिए युवाओं की खासी भीड़ जुटती है। कांगड़ा जिला में छिंज का सफर नूरपुर तहसील के रैहन कस्बा से शुरू हुआ। इस स्थान पर बाबा राजाराम जी का लगभग 200 वर्ष प्राचीन पवित्र स्थल है। वैसे यहां कांगड़ा घाटी में दंगल का प्रचलन नहीं था। बाबा राजाराम जी ने ही सर्वप्रथम सार्वजनिक दंगलों का आयोजन करवाया। इन दंगलों के उपरांत ही मौजूदा पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश में छिंज आरंभ हुई। बताते हैं कि एक दिन जब बाबा दंगल करवा रहे थे तो उनके मन में न जाने क्या आया कि उन्होंने अपनी घोड़ी एक पहलवान को भेंटकर दी और समाधि लेने के लिए भलाखी गांव में चले गए, जो कि रैहन से आठ किलोमीटर दूर है। किंवदंती के अनुसार छिंजों का आयोजन लखदाता ईष्टदेव की याद को बनाए रखने के लिए किया जाता है। यहां पर छोटे-छोटे अखाड़े भी लोग आयोजित करते हैं, ऐसा मनोकामना पूर्ण होने पर किया जाता है। मान्यता है कि यदि पुरुष छिंज देखते हैं तो उम्र्र में बढ़ोतरी होती है। इसी इच्छा के साथ लोग अधिक संख्या में छिंज देखने पहुंचते हैं। कांगड़ा जिला के कई क्षेत्रों में छिंजों को आयोजित करने के लिए गांव के कुछ लोग इकट्ठा होकर लोगों से चंदा इत्यादि एकत्रित करते हैं और बाहरी राज्यों के पहलवानों को भी दंगल में हिस्सा लेने के लिए निमंत्रण भी भेजते हैं। यहां हिमाचल प्रदेश के नामी पहलवानों के अलावा पड़ोसी राज्य हरियाणा, पंजाब व जम्मू-कश्मीर के पहलवान कुश्ती लड़ने पहुंचते हैं। यहां का वीरभद्र सिंह मंदिर के समीप अखाड़ा, बल्ले दा पीर व रैहन इत्यादि के अखाड़े काफी मशहूर हैं। जहां छिंज देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है। छिंज के अंत में सर्वश्रेष्ठ पहलवान को सोने का कंगन, घड़ी, चांदी का गुर्ज, टेलीविजन व नकद राशि इत्यादि उपहार के स्वरूप में दिए जाते हैं। आधुनिक युग के प्रभाव का असर भले ही नई पीढ़ी पर पड़ रहा हो, लेकिन उसके बावजूद छिंजों के प्रति लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ है। इन अखाड़ों में नौजवानों की हुलड़बाजी के कारण अब लड़कियों व महिलाओं की उपस्थिति बिलकुल कम हो गई है।







source: DivyaHimachal

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