बागीचों से मधुमक्खियां गायब


पतलीकूहल — कुल्लू घाटी में इस बार कड़क मौसम के मिजाज से जिस तरह से तापमान में उतार-चढ़ाव रहा, उससे सेब के बागानों में मधुमक्खियां परागण प्रक्रिया नहीं कर पा रही हैं। घाटी में हर रोज दोपहर बाद ऊंची चोटियों पर होने वाली बर्फबारी व तेज बर्फीली हवाओं के कारण मधुमक्खियां बक्सों से बाहर नहीं निकल रही हैं। सेब के पौधोें में परागण प्रक्रिया को कामयाब करने के लिए बागबान कई तरह से पोलीनाइजर की खिली टहनियों को सेब के पौधों पर लटका रहे हैं, ताकि अच्छी सेटिंग हो। हर वर्ष बागबान इस प्रयोग को करता रहा है और उसे इसमें भारी लाभ मिला है। पिछले काफी दिनों से शुक्रवार को घाटी में पूर्ण रूप से सूर्य देवता के दीदार होने से वातावरण गर्म हुआ है, जिससे मधुमक्खियां कुछ हरकत में आई हैं। आजकल बागबान मौसम के मिजाज को देखते हुए अपने बागानों में गुलाबी कली की अवस्था में होने वाली दवाइयों की स्प्रे करने को तरजीह देने में लगे हैं, क्योंकि जब तक रासायनिक सुरक्षा चक्र बना रहेगा, तब सेब बीमारी से बचा रहेगा। जैसे ही रासायनिक सुरक्षा चक्र (कैमिकल अंब्रेला) टूटेगा तो वातावरण में विराजमान बीमारियों से बागान इसकी चपेट में आ जाएंगे। वातावरण में पहले ही संक्रमण रोगों व अन्य बीमारी जो सेब के बागानों को जकड़ लेती है। विद्यमान है इस स्थिति में बागबानों को बागबानी विश्वविद्यालय एवं बागबानी विभाग द्वारा अनुमोदित छिड़काव सारिणी के अनुसार को स्प्रे करने को तरजीह देनी चाहिए, जिससे बागान बीमारियों की गिरफ्त में न आएं। हर फसल पर मौसम का विशेष महत्त्व रहता है, जिससे प्राकृतिक आपदा व मौसम के कुचक्र के आगे सभी बेबस रहते हैं, लेकिन फसल की गुणवत्ता को बनाने में बागबानों की कार्यशैली विशेष महत्व रखती है, जिससे उसकी मेहनत प्रत्यक्ष रूप से बागानों के रखरखाव से प्रदर्शित होती है।







source: DivyaHimachal

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