बड़सर — बड़सर सब-डिवीजन मेंरसोई गैस की मारामारी का नजला बेशक सरकारी उपक्रम मेंचलने वाली सिविल सप्लाई पर डलता रहा है, लेकिन वास्तविकता यह है कि खोट सिविल सप्लाई का न होकर सरकार के खाते मेंज्यादा जाता है। बड़सर उपमंडल में24 हजार उपभोक्ता हैं, जबकि 24 हजार उपभोक्ताओं को 21 दिन मेंएक बार गैस मुहैया करवाने के लिए नौ हजार गैस सिलेंडर की सप्लाई चाहिए होती है। नौ हजार की एवज मेंबड़सर मेंबमुश्किल सात हजार सिलेंडर प्रतिमाह और कई बार इससे भी ज्यादा समय मेंसिविल सप्लाई के गोदाम तक पहुंचते हैं। आंकड़ों पर गौर करें, तो कम से कम 24 हजार सिलेंडर हर माह पहुंचने जरूरी हैं, ताकि गैस सिलेंडरों की सप्लाई हर उपभोक्ता तक पहुंच सके। 24 हजार के बजाय जब सात हजार सिलेंडर बड़सर गैस एजंेसी को मिलते हैं, तो ऐसे में बड़सर गैस एजेंसी की सारी खपत गैस एजेंसी की इर्द-गिर्द फैले कस्बांे मेंही हो जाती है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को परेशान होना पड़ता है। जानकारी यह भी है कि अब आटोमेशन होने के कारण गैस एजेंसी उपभोक्ता की डिमांड रिक्वेस्ट को मंुबई कार्यालय भेजती है, वहां से अनुमति मिलने के बाद उपभोक्ता को गैस दी जाती है, लेकिन बड़सर उपमंडल में दूरसंचार की बदहाल व्यवस्था के कारण उपभोक्ताआंे को रोज दो-चार होना पड़ता है, क्यांेकि यहां कभी सर्वर डाउन होने, तो कभी पूरे सिस्टम के ही ठप होने की शिकायत से गैस एजेंसी के कर्मी परेशान होते रहते हैं। गैस एजेंसी मेंही गैस की निरंतर कमी व खपत से कम सिलेंडरांे का आना समस्या की असली जड़ है, जिस पर सरकार को ध्यान देना जरूरी है अन्यथा यह समस्या जस की तस बनी रहेगी।
source: DivyaHimachal
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