फिर हुई बारिश से ठियोग कूल-कूल

ठियोग – बारिश व बर्फबारी के बाद मौसम ठीक होने के बाद सेब बागबानों प्रोनिंग व खाद गोबर डालने के कार्य में जुट गए हैं। हालांकि गुरुवार को फिर से उपरी षिमला के नारकंडा खडापत्थर कुफरी फागू छराबड़ा आदि उंचाई वाले क्षेत्रों में हल्की बर्फबारी शुरू हो चुकी थी और मौसम काफी ठंडा भी हो गया है। ऐसे में ठंड के कारण किसान बागबान भी अपने कार्य को जल्द नहीं निपटा पा रहे। इन दिनों ठियोग सहित उपरी शिमला में अधिकतर बागबान बागीचों में देखे जा रहे हैं। सेब वाले क्षेत्रों में पौधों की प्रोनिंग के अलावा खाद गोबर डालने का कार्य वैसे तो फरवरी महिने तक चला रहता है लेकिन जिन क्षेत्रों में बर्फबारी अधिक होती है या फिर अधिक नमी वाले इलाके हैं वहां पर बागबान सेब के कार्य को निपटाने में लगे हुए हैं । ऐसे में सभी अब इन कार्य को जल्द खत्म करने चाह रहे हैं। बागबानी विशेषज्ञ के अनुसार बागबानों को सेब के तोलिए बनाने की विधि पर विशेष ध्यान देना चाहिए। बागबानों को सबसे पहला ध्यान यह रखना चाहिए कि तोलिए को हमेशा नमी के समय मे ही करना चाहिए क्योंकि इससे एक तो पौधों के तोलिए में जड़ों को कम नुकसान होगा तथा इससे पौधें में बीमारियों के पनपने की संभावना कम रहती है। ठियोग में बागबानी विभाग के विशय विषेशज्ञ मदन ठाकुर ने इसकी विधी पर विस्तार से बताते हुए कहा कि पौधे के तने वाले भाग को बिलकुल न छेड़ा जाए पौधे के आधे भाग की मिटटी को सख्त रखें और तोलिए करते समय इसे बिलकुल भी नहीं खोदना चाहिए। उन्होंने ने बागबानों को सलाह देते हुए है कहा कि इस पर कस्सी कुदाली से खोदने पर जडों में अनावश्यक जख्म हो जाते हैं और इससे विभिन्न रोगों के कीटाणुओं तथा वूलि एफेड का प्रकोप बढ़ने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त इन भागों से कोमल टहनियां निकल आती है जिन पर वूलिऐफेड का र्स्वाधिक आक्रमण होता है। तने में किसी तरह का घास न पनपे इससे कई रोग पैदा हो जाते हैं। विशेशज्ञ का मानना है कि तोलिए में यदि खरपतवार उगने से पौधों में कई बीमारियों के पनपने की संभावना बढ़ जाती है और पौधें का विकास रूक जाता है। पौधें की कलम वाला भाग ग्राफिंटग यूनियन वाला भाग भूमि से उपर होना चाहिए और किसी भी सूरत में दबा न हो। इसके दबने से पौधे के सड़ने तथा कालर गलन रोग का भय निरंतर रहता है। बागबानी अधिकारी बताते हैं कि खाद उरर्वक का प्रयोग फलदार पौधों के बाहरी आधे भाग में ही डालकर करना चाहिए तथा तने के समीप से आधे भाग तक या एक से डेढ मीटर के घेरे में किसी खाद व उवर्रक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। गोबर की खाद तथा उरर्वक को बाहरी आधे भाग में फैलाकर डालें तथा फिर इसे मिटटी की पर्त से ढक दें। पौधें के फैलाव के अनुरूप ही तोलिए के बाहरी किनारों पर नाली बनाकर जल निकासी हो सके। उन्होंने बताया कि तोलिए को हर साल बनाना चाहिए इससे हवा के आदान प्रदान के अलावा अतिरिक्त भूमि की पर्तों में अदला बदली हो जाती है जिससे जल शोषण शक्ति मिलती है और आवश्यक तत्वों की उपलब्धता पौधों को संभव हो पाती है।

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