सराहां— हमारे देश की संस्कृति इतनी भव्य है कि यहां परमपिता परमेश्वर सहित देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना तो की ही जाती है साथ ही प्रकृति ,वनस्पति व अपने पशुधन गो वंश की पूजा करने की भी परम्परा है।ऐसा ही एक पर्व शरद पूर्णिमा के दिन पच्छाद के ग्रामीण इलाकों में आज भी मनाया जाता है। जिसे गरोने कहा जाता है। इस दिन ग्रामीण अपनी गोशाला की लिपाई -पुताई करके अपने गौवंश को नहला धुला कर पुष्प माला डालकर उनकी पूजा करते हैं और उन्हें अच्छा चारा देते है। इस दिन गोशाला के आगे जितने पशु हो, उतने गोबर के पिंड बनाकर उनकी दाल,चावल,शक्कर व फूल चढ़ा कर पूजा की जाती है। आम तौर पर पशुओं को नियंत्रित करने के लिए पशुपालक छड़ी का प्रयोग करते है, लेकिन इस दिन छड़ी का प्रयोग वर्जित माना जाता है।आज के दिन पशुओं को प्रतिदिन चराने वाले ग्वालो को भी तिलक लगाया जाता है और उनके साथ हसी मजाक करने की भी प्रथा है। हस्यपरिहास में छड़ी का प्रयोग ग्वालो पर किया जाता है।आज के दिन से ही ग्रामीण दीपावली के पर्व की तैयारी भी आरंभ कर देते हैं । यही नहीं आज से ही ग्रामीण नए अनाज का उपयोग भी शुरू कर देते है।शहरी इलाकों में इस दिन को गढबढे के नाम से मनाया जाता है ।इस दिन माताएं अपने बच्चों की खुशहाली के लिए व्रत रखती है। इस दिन मिट्टी के बर्तन जिसे गढबढे कहा जाता है, में दीप जलाने की प्रथा भी ह,ै जिसका मीठे चावल से पूजन किया जाता है।
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Courtsey: Divya Himachal
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