ज्यादा बोझ उठाने से होती है स्पाइन इंजरी

हिमऑर्थोकॉन की वर्कशॉप में बोले विशेषज्ञ, मंडी में जुटे देश के 100 डाक्टर, शोधार्थी

मंडी – पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक बोझ उठाने की वजह से नाडि़यां हड्डियों के बीच दब जाती हैं। ऐसी स्थिति में यदि सर्जरी करवाई जाए, तो व्यक्ति दोबारा उसी स्थिति आ जाता है। यह बात हिमऑर्थोकॉन की तीन दिवसीय कार्यशाला के पहले दिन स्पाइन इंजरी पर जम्मू मेडिकल कालेज के प्रो. डा. ब्यास देव ने कही। पहले दिन रीढ़ की हड्डी पर विशेषज्ञ चिकित्सकों ने नई चिकित्सा पद्धति पर विचार रखे। इस दौरान कृत्रिम हड्डी पर लाइव आपरेशन भी किए गए। वर्कशॉप में डा. ब्यास देव ने कहा कि देश की आबादी में एक लाख लोगों में से 200 लोग स्पाइन इंजरी से ग्रसित होते हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों की विकट भौगोलिक परिस्थितियों के चलते यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है। पहाड़ी इलाकों में दुर्घटना में घायल हुए व्यक्ति को अनजान लोगों द्वारा रेस्क्यू किए जाने और फिर ट्रांसपोर्टेशन के दौरान ज्यादा चोटें लगती हैं। इसलिए जितनी नजदीक और जल्दी सर्जरी करवाने की व्यवस्था हो, उससे मरीज के ठीक होने की संभावना अधिक रहती है। डा. ब्यास देव ने कहा कि हमारे देश में स्पाइन सर्जरी को लेकर नई तकनीक अपनाई जा रही है, जो अमरीका और दूसरे यूरोपीय देशों में अपनाई जा रही है। डा. ब्यास देव ने कहा कि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की टांगों में अगर हलचल रहेगी, तो उसे ठीक करने की संभावना बनी रहती है। अगर टांगों में जान ही न हो, तो उसे सर्जरी कर बैठने के काबिल बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि दुर्घटना के 48 से 72 घंटे के बीच सर्जरी का होना जरूरी है। स्पाइन कार्यशाला के दौरान फोर्टिस मोहाली से आए डाक्टर दीपक जोशी ने बताया कि रीढ़ की हड्डी को स्क्रू से कैसे बांधा जा सकता है। वहीं पर ट्रांसपोर्टेशन के दौरान भी इंजरी होती है।  इस कार्यशाला का संचालन डा. ओम पाल शर्मा, डा. हरीश बहल, डा. संदीप वैद्य व डा. देवेंद्र शर्मा ने करवाया है। मंडी में हिमऑर्थोकॉन में लगभग 100 के करीब सदस्य भाग ले रहे हैं।

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Courtsey: Divya Himachal
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