राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिये प्राकृतिक कृषि बेहतर विकल्पःराज्यपाल

शिमला जिला के बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र मशोबरा में किसानों तथा बागवानों से संवाद करते हुए राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने किसानों से उनके उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने तथा मण्डियों में बेहतर दाम प्राप्त करने के लिए ‘शून्य लागत प्राकृतिक कृषि’ अपनाने का आग्रह किया।
राज्यपाल ने कहा कि कृषि क्षेत्र में राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्राकृतिक खेती एक बेहतर विकल्प है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के उत्पाद न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी हैं, बल्कि पर्यावरण मित्र भी हैं।
राज्य के किसानों तथा बागवानों के साथ इस संवाद सत्र का आयोजन बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र मशोबरा द्वारा किया गया। राज्यपाल ने कीटनाशकों तथा रासायनिक खादों के बढ़ते प्रयोग पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इनसे फसलों में स्वास्थ्य के लिए हानिकार अव्यव घुल जाते हैं और साथ ही मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी प्रभावित होती है। उन्होंने वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे कृषक समुदाय को पारम्परिक एवं प्राकृतिक खेती के बारे में शिक्षित करें तथा राज्य में मौजूदा कृषि के तरीकों में सुधार के लिए शून्य बजट खेती अपनाने के लिए विशेष जागरूकता उत्पन्न की जानी चाहिए। उन्होंने वैज्ञानिकों से गहन अनुसंधान करने तथा नई तकनीकें विकसित करने के अलावा विशेषकर प्राकृतिक कृषि में मौजूदा तकनीकों में सुधार करने को कहा। उन्होंने कहा कि प्रयोगशालाओं में किया गया अनुसंधान किसानों तथा खेतों तक पहुंचना चाहिए और इसका प्रसार स्थानीय बोलियों में भी किया जाना चाहिए।
राज्यपाल ने कहा कि पदमश्री डा. सुभाष पालेकर ने देश के किसानों को शून्य लागत प्राकृतिक खेती की अवधारणा देकर उनके लिये प्रेरणा बने और देश के 40 लाख से अधिक किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की कृषि तकनीक से आम लोगों को लाभ मिलेगा और साथ ही उन लोगों को भी, जिन्होंने पहले ही तकनीक को अपनाया है और अपने उत्पादों के बेहतर दाम प्राप्त कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सिक्किम देश का जैविक राज्य बन गया है और यह हैरानी की बात है कि लगभग 60 प्रतिशत वैज्ञानिकों ने हिमाचल के बागवानी तथा कृषि विश्वविद्यालयों से अध्ययन किया है।
आचार्य देवव्रत ने किसानों को उनके खेतों में उत्पादन बढ़ाने के लिए शून्य लागत प्राकृतिक खेती तथा देशी नस्ल की गायों को अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि बिना किसी उद्देश्य के कुछ भी क्रियान्वित नहीं किया जा सकता और प्राकृतिक कृषि अपनाने के पीछे हमारे समक्ष अनेक विशेष कारण हैं। उन्होंने कहा कि खेती में रासायनिक खादों के कारण गत दशकों के दौरान बीमारियां बढ़ी हैं और रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती में बदलाव के लिए यह उपयुक्त समय है।
उन्होंने कहा कि एक गाय 30 एकड़ भूमि में खेती के लिए सहायक हो सकती है और इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में सुधार होगा, कम से कम पानी का प्रयोग कर अधिक उपज प्राप्त होगी तथा उत्पादों के उपयुक्त दाम भी प्राप्त होंगे। उन्होंने कहा कि देसी गाय हर प्रकार से लाभकारी है और पारम्परिक कृषि की मद्द से कृषि क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है। उन्होंने आशा जाहिर की कि विशेषकर युवा तथा अग्रणी किसानों के साथ संवाद प्रतिभागियों में नई सोच का संचार करेगा और उनके जीवन में आशातीत बदलाव आएगा।
डा. वाई.एस. परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, सोलन के कुलपति डा. एच.सी. शर्मा ने राज्यपाल का स्वागत किया तथा विश्वविद्यालय की गतिविधियों का ब्यौरा दिया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने पहले ही प्राकृतिक खेती की अवधारणा को लागू किया है। उन्होंने उच्च घनत्व पौधरोपण तथा कृषि विविधिकरण अपनाने पर भी बल दिया।
बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र मशोबरा की एसोशिएट प्रोफैसर डा. सुषमा भारद्धाज ने केन्द्र में प्रशिक्षण गतिविधियों पर प्रकाश डाला और धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
लेडी राज्यपाल श्रीमती दर्शना देवी भी इस अवसर पर राज्यपाल के साथ थी।
वैज्ञानिक, अग्रणी किसान तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
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